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26 सितंबर को बीजेपी की पुरानी सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से अलग हो गई. पार्टी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने इसका ऐलान किया. अकाली दल तीन कृषि बिल का विरोध कर रहा है. चंडीगढ़ में पार्टी मुख्यालय में तीन घंटे की मीटिंग के बाद सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि हम एनडीए का हिस्सा नहीं रह सकते क्योंकि केंद्र सरकार MSP बचाए रखने की विधायी गारंटी ना देने पर अड़ी है.

नौ दिन पहले ही अकाली दल केंद्र सरकार से अलग हुआ था, जब हरसिमरत कौर बादल ने केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा दिया. 25 सितंबर को किसानों की तरफ से बुलाए गए भारत बंद के दौरान सुखबीर बादल और हरसिमरत कौर बादल ट्रैक्टर मार्च-चक्काजाम में शामिल हुए थे. सुखबीर बादल ने कहा कि एक अक्टूबर को हमारी पार्टी तख्त दमदमा साहिब, अकाल तख्त और तख्त केशगढ़ साहिब से चंडीगढ़ की ओर किसान मार्च शुरू करेगी.
ये वाजपेयी जी और बादल साहब का NDA नहीं: हरसिमरत
करीब 23 साल पुराना गठबंधन टूटने के बाद हरसिमरत कौर बादल ने बीजेपी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को याद किया. उन्होंने ट्वीट किया,
”अगर 3 करोड़ पंजाबियों का दर्द और विरोध-प्रदर्शन भारत सरकार के कठोर रुख को बदलने में असफल रहा, तो ये वाजपेयी जी और बादल साहब (प्रकाश सिंह बादल) की परिकल्पना वाला NDA नहीं है. एक गठबंधन जो अपने सबसे पुराने सहयोगी की नहीं सुनता और देश के अन्नदाताओं की मांग पर आंखें मूंद लेता है, वो पंजाब के हित में नहीं है.”
किसानों को गुमराह करने का नतीजा: कैप्टन अमरिंदर
एनडीए से गठबंधन टूटने पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदंर सिंह ने कहा,
जब बीजेपी ने इस बात का खुलासा कर दिया कि अकाली दल किसान विरोध विधेयकों का पक्षधर था, तो अकाली दल के पास कोई विकल्प नहीं बचा था. गठबंधन का अंत तीन महीने से किसानों को गुमराह करने का नतीजा है.
NDA को अब नए साथी मिल गए हैं: शिवसेना
NDA से पहले ही अलग हो चुकी एक और पार्टी शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा,
शिवसेना को मजबूरन एनडीए से बाहर निकलना पड़ा, अब अकाली दल निकल गया. NDA को अब नए साथी मिल गए हैं. मैं उनको शुभकामनाएं देता हूं. जिस गठबंधन में शिवसेना और अकाली दल नहीं हैं, मैं उसको NDA नहीं मानता हूं.
पहले से चल रही थी खटपट
दिल्ली विधानसभा चुनाव और इसी साल हरियाणा में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भी अकाली दल और बीजेपी के बीच उठापटक दिखी थी. हरियाणा में अकाली दल ने बीजेपी की बजाय इनेलो के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था.
पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनाव में 117 सीटों में से अकाली दल 15 तो बीजेपी तीन सीटों पर सिमट गई. बीजेपी ने तब आधी सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग की थी, जिसे अकाली दल ने नहीं माना. 2019 लोकसभा चुनाव में पंजाब की 13 में से 10 सीटों पर लड़े अकाली दल ने दो सीटें जीतीं तो बीजेपी ने तीन में से दो सीटों पर जीत दर्ज की.
पंजाब में मार्च 2022 में विधानसभा चुनाव हैं. माना जा रहा है कि अकाली दल किसानों का वोट बैंक खोना नहीं चाहता. कहा गया कि हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे के बाद भी किसानों में साफ संदेश नहीं जा पाया तो अकाली दल एनडीए से अलग हो गया. शिवसेना और तेलगु देशम पार्टी के बाद अकाली दल बीजेपी का तीसरा बड़ा सहयोगी दल है, जो NDA से अलग हुआ है.