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सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST एक्ट को लेकर बेहद महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
‘किसी इमारत की चारदीवारी के भीतर अगर कोई अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति का अपमान करता है या उसे डराता धमकाता है तो इसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा’.
मामला क्या है?
‘इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार मामला उत्तराखंड निवासी हितेश वर्मा का है. इन पर एक महिला ने SC-ST एक्ट के तहत मामला दर्ज करवाया था. हितेश वर्मा ने हाईकोर्ट में मांग की थी कि इस एक्ट के तहत दर्ज चार्जशीट रद्द की जाए, लेकिन हाईकोर्ट नहीं माना. इसी को हितेश वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेन्ज किया था.
मामले की सुनवाई जस्टिस हेमंत गुप्ता, एल नागेश्वर राव, और अजय रस्तोगी की बेंच कर रही थी. इन्होंने कहा कि मामला जमीन को लेकर हुए विवाद का है. ये बात खुद आरोप लगाने वाली महिला ने स्वीकार की है.
बेंच ने कहा कि इस जमीनी विवाद की वजह से अपीलकर्ता (हितेश वर्मा) और उनके साथ के लोग प्रतिवादी (आरोप लगाने वाली महिला) को उस जमीन पर खेती नहीं करने दे रहे थे. ये मामला जायदाद के मालिकाना हक़ का है और सिविल कोर्ट में पेंडिंग है. इस मामले को लेकर कोई भी विवाद SC/ST एक्ट के तहत तब तक दर्ज नहीं किया जा सकता जब तक विक्टिम को सिर्फ उसके SC/ST समुदाय की होने की वजह से अपमानित न किया गया हो.
FIR में क्या है?
रिपोर्ट के अनुसार दिसंबर 2019 में दर्ज हुई FIR में SC समुदाय की महिला ने आरोप लगाए थे कि हितेश वर्मा और उनके साथ के लोग उसे खेत में काम नहीं करने दे रहे थे. उसे और उसके साथ काम करने वाले मजदूरों के साथ गाली गलौज कर रहे थे. यही नहीं, जहां वो घर बनवा रही थी, वहां से कंस्ट्रक्शन का सामान भी उठा ले गए थे. FIR में महिला ने आरोप लगाए थे कि हितेश वर्मा ने उसके खिलाफ जातिसूचक शब्दों का प्रयोग किया.FIR के मुताबिक़ घटना महिला के घर में हुई थी. वहां कोई दूसरा व्यक्ति मौजूद नहीं था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पब्लिक की नज़र में आने वाली किसी जगह पर अपमानजनक शब्द बोले जाने वाला नियम यहां लागू नहीं होता. SC/ST एक्ट का लक्ष्य अगड़ी जाति के लोगों द्वारा समाज के पिछड़े समुदाय के लोगों के अपमान के लिए की गई हरकतों को, जो पिछड़ों की जाति/समुदाय की वजह से की गई हैं, को दंडित करना है. इस मामले में जब पार्टियों ने सिविल अदालत में मामला दर्ज करा दिया है, तो वो पहले ही कानूनी प्रक्रिया का सहारा ले रहे हैं.
बेंच ने कहा कि FIR में जो दूसरे मामले दर्ज हैं, उनमें अपीलकर्ता के ऊपर कार्रवाई जारी रहेगी.
क्या कहता है अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989?
मामले में जो आरोप लगे हैं, उनके लिए अधिनियम कहता है:
कोई भी व्यक्ति जो अनुसूचित जाति/जनजाति का सदस्य नहीं है वो अगर जनता को दृष्टिगोचर किसी स्थान में अनुसूचित जाति/ जनजाति के सदस्य का अपमान करने के आशय से साशय (जानबूझकर) उसे अपमानित करेगा या डराएगा धमकाएगा, तो उसे कम से कम छह महीने और अधिकतम पांच साल का कारावास और जुर्माने की सजा दी जा सकती है.